ऋषिकेश। बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के मार्गदर्शन व नेतृत्व में और परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में आयोजित ऊर्जा संचय समागम शिविर का आज समापन हुआ। इस समागम का सैंकडों परिवारों ने लाभ उठाया और तीन दिनों में उनके जीवन में होने वाले अद्भुत अनुभवों को साझा किया। कारगिल विजय दिवस के अवसर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री और स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने शहीदों की स्मृति में रूद्राक्ष का पौधा रोपित किया तथा दीप प्रज्वलित कर शहीदों को श्रद्धाजंलि अर्पित की। स्वामी जी ने कहा कि हम सबके कल के लिये, हमारे आने वाले कल के लिये और हमारे और हमारी आने वाली पीढ़ियों के कल के लिये जिन्होने अपना आज दे दिया, सब दे दिया, सर्वस्व दे दिया उन शहीदों को नमन। स्वामी जी ने कहा कि कारगिल विजय दिवस शौर्य की स्वर्णिम गाथा है। भारत की सीमाओं की रक्षा करने वाले हमारे जवानों को समर्पित है ‘कारगिल विजय दिवस’। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने भारत की सीमाओं पर खड़े सभी जवानों का अभिनन्दन करते हुये कहा कि कारगिल युद्ध में जो जवान शहीद हुये वे भौतिक रूप से तो हमारे साथ नहीं हैं परन्तु वे कभी हमसे दूर न जा पायेगे। वे सदा इस माटी में अपनी देश सेवा की सुगन्ध प्रसारित करते रहेंगे। उनकी वीरता की कहानियां पीढ़ियों तक याद की जायंेगी, वे हमेशा हमारे साथ रहेगी और आने वाली पीढ़ियों को साहस प्रदान करती रहेंगी। वीर जवानों के संस्मरण हमारे जीवन के पावन संस्मरण हैं और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिये ये प्रेरणास्रोत हैं। उन्होने अपने संदेश में कहा कि ’’देश हमें देता है सब कुछ हम भी तो कुछ देना सीखे।’’ ये भाव हम सब के भीतर हो तभी आत्मनिर्माण और राष्ट्र निर्माण होगा। हम आत्म निर्भर बनेंगे और फिर आत्मजागरण भी होगा। स्वामी जी ने कहा कि आत्मजागरण के लिये साधना, स्वाध्याय और सत्संग जरूरी है। स्वामी जी ने कहा कि हमारे देश के वीर जवानों ने दुश्मनों के नापाक इरादों को नाकाम कर कारगिल की पहाड़ियों पर तिरंगा फहराया था, यह अनुपम दृश्य हर भारतवासी की स्मृतियों में हमेशा जीवंत रहेगा। कारगिल विजय दिवस हमे भारतीय सेना के वीर जवानों के शौर्य और बलिदान की याद दिलाता हैं। हमारे देश के वीर जवानों ने अपनी मातृभूमि के लिये अपना सर्वोच्च बलिदान किया। हमारे बहादुर जवानों के तप, त्याग, दृढ़ संकल्प, धैर्य और हिम्मत का ही परिणाम है कि कारगिल की पहाड़ियों पर आज भी तिरंगा गर्व के साथ लहरा रहा है। इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि अब समय आ गया कि हम सनातन व अद्वैत के मंत्र को आत्मसात करें। ये दिव्य सूत्र न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व को एक नई दिशा व नई ऊर्जा दे सकते हैं। अद्वैत एक ऐसा मंत्र है जहां मानव-मानव एक समान सब के भीतर है भगवान का दर्शन होता है। आदि गुरू शंकराचार्य जी ने छोटी सी उम्र में भारत का भ्रमण कर हिन्दू समाज को एक सूत्र मंे पिरोने हेतु इन चारों पीठों की स्थापना की। तभी तो पूजा हेतु ‘केसर’ कश्मीर से तो नारियल केरल से मंगाया जाता है। जल गंगोत्री से और पूजा रामेश्वर धाम में, क्या अद्भुत दृष्टि है। कैसा अद्भुत सेतु बनाया समाज को जोड़ने का; भारत को एक रखने का और इसलिये उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक, दक्षिण से उत्तर तक, पूर्व से पश्चिम तक पूरे भारत का भ्रमण कर एकता का संदेश दिया। उनके संदेश का सार एकरूपता नहीं एकात्मकता है। भले ही एकरूपता हमारे भोजन में, हमारी पोशाक में न हो परन्तु हमारे बीच एकता जरूर बनी रहे, एकरूपता हो तो हमारे भावों में हो, विचारों में हो, देशभक्ति और देश प्रेम के लिये हो, ताकि हम सभी मिलकर रहें और अपने राष्ट्र को प्राथमिकता देते हुये देशप्रेम को दिलों में जागृत रखे। हमारे दिलों में देवभक्ति तो हो परन्तु देशभक्ति और देशप्रेम सर्वप्रथम हो, मतभेद भले हो पर मनभेद न हो। बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने कहा कि ऊर्जा संचय समागम के समापन अवसर पर कहा कि पहली बार हमें तीन दिनों के लिये उत्तराखंड़ में आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि परमार्थ निकेतन के दिव्य वातावरण में पूज्य स्वामी जी के पावन सान्निध्य में 600 साधकों ने गंगा जी के तट पर बैठकर ऊर्जा संचय कर अपने विकारों की मुक्ति के लिये अनुष्ठान किया। उन्होंने कहा कि एक ऐसी विशिष्ठ साधना जो विलुप्त हो रही पद्वति के माध्यम से व्यक्ति साधना के बल पर अपने विकारों से मुक्त होकर अपने जीवन को बदल सकता है। ध्यान साधना के द्वारा जीवन में प्रसन्नता व प्रभु को प्राप्त करने का मार्ग प्राप्त कर सकता है। बाड़ी डिटाक्स पर पूरी दुनिया में बहुत स्थानों पर कार्य हो रहा हैं परन्तु हमने ब्रेन डिटाक्स पर कार्य किया है। पहली बार बागेश्वर धाम में हमने ब्रेन डिटाक्स के लिये ऊर्जा संचय समागम का आयोजन किया था दूसरी बार पूज्य स्वामी जी के आशीर्वाद से परमार्थ निकेतन में आयोजित किया हैं। धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने कहा कि अगर हम भारत को एक शरीर माने तो उसका मस्तिष्क उत्तराखंड हैं और आंखें ऋषिकेश हैं। आज की गंगा आरती शहीदों को समर्पित की तथा गंगा जी के तट पर दीप प्रज्वलित कर शहीदों को श्रद्धाजंलि अर्पित की।
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