उत्तराखंड शिक्षा विभाग ने शिक्षकों के तबादलों को लेकर एक नई नियमावली तैयार कर ली है, जिसे जल्द ही राज्य मंत्रिमंडल (कैबिनेट) की मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। नियमावली में कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं, जिनमें बोर्ड परीक्षा परिणामों के आधार पर अनिवार्य तबादले, संवर्ग परिवर्तन की सीमित छूट और विशेष श्रेणियों को राहत जैसे प्रावधान शामिल हैं।
नियमावली के अनुसार, यदि किसी शिक्षक का कक्षा 10वीं या 12वीं का बोर्ड परीक्षाफल लगातार दो वर्षों तक खराब रहता है, तो उसका तबादला अनिवार्य रूप से पर्वतीय क्षेत्र में किया जाएगा। यह कदम शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और शिक्षकों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
वर्ष 2017 से प्रदेश में तबादला अधिनियम लागू है, जिसके तहत सभी विभागों के कर्मचारियों और अधिकारियों के तबादले किए जाते हैं। अब शिक्षा विभाग ने शिक्षकों के लिए पृथक नियमावली तैयार की है, जिसमें राज्य को ‘पर्वतीय’ और ‘मैदानी’ क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। शिक्षकों को इन क्षेत्रों में दी गई सेवा के आधार पर अंक मिलेंगे, और उन्हीं अंकों के अनुसार तबादले किए जाएंगे।
शिक्षकों को अपने पूरे सेवाकाल में एक बार संवर्ग परिवर्तन की अनुमति दी जाएगी, लेकिन इसके लिए संबंधित संवर्ग में कम से कम तीन वर्ष की सेवा आवश्यक होगी। यह प्रावधान उन्हें करियर विकल्पों में लचीलापन देने के लिए रखा गया है।
एससीईआरटी, सीमैट और जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थानों (डायट) में कार्यरत शिक्षकों के लिए जब तक पृथक कैडर नहीं बनता, तब तक उनके तबादले भी इसी नियमावली के तहत किए जाएंगे।
नियमावली में अविवाहित महिला शिक्षकों को विवाह के पश्चात पति के कार्यस्थल या गृह जिले में तबादला पाने के लिए सेवाकाल में एक बार विशेष छूट देने का प्रावधान भी किया गया है।
शिक्षा विभाग के अनुसार नियमावली का प्रारंभिक प्रस्तुतिकरण राज्य कैबिनेट में किया जा चुका है। कुछ सुझावों और आवश्यक संशोधनों के बाद इसे अंतिम मंजूरी के लिए दोबारा कैबिनेट में लाया जाएगा।
यह नियमावली पारदर्शी और उत्तरदायी तबादला प्रक्रिया को लागू करने की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है, जिससे राज्य के शिक्षा तंत्र को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
