उत्तराखंड सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती सामने आई है, जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि रिस्पना नदी के फ्लड जोन में बसी बस्तियों के मकानों को ध्वस्त किया जाए।
एनजीटी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि फ्लड जोन में किसी भी तरह का स्थायी निर्माण नहीं किया जा सकता, और इसलिए इन बस्तियों को पूरी तरह से नष्ट किया जाना चाहिए। इसके साथ ही एनजीटी ने उत्तराखंड विधानसभा द्वारा पारित अतिक्रमण हटाने पर रोक से संबंधित कानून को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अमान्य घोषित कर दिया है।
इस आदेश के तहत, रिस्पना नदी के किनारे बसी 525 अवैध बस्तियों पर अब दोबारा ध्वस्तीकरण की तलवार लटक गई है। इस साल की शुरुआत में, एनजीटी के आदेश पर नगर निगम और एमडीडीए ने रिस्पना नदी के किनारे 27 बस्तियों में अवैध निर्माणों की पहचान की थी। इनमें से 89 मकान नगर निगम, 12 मसूरी नगर पालिका, और 415 एमडीडीए की भूमि पर थे। इसके अलावा, नौ अवैध मकान राज्य सरकार की जमीन पर बने हुए थे।
हालांकि कुछ मकानों को पहले ही ध्वस्त किया जा चुका था, लेकिन विरोध और कानूनी जटिलताओं के कारण कई मकानों पर कार्रवाई नहीं की जा सकी थी। 16 दिसंबर को इस मामले की सुनवाई के दौरान, एनजीटी ने अपने आदेश में इन बस्तियों को बचाने के लिए पारित कानून को निष्प्रभावी करार दिया। अब एनजीटी ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि 13 फरवरी तक वह अतिक्रमण की स्थिति, उन पर की गई कार्रवाई और प्रदूषण नियंत्रण के उपायों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करे।