देहरादून। कीर्तिनगर ब्लॉक के न्यूली गांव के मोहित मैठाणी (भानु) ने दुबई से लौटकर अपने गांव में मशाला उद्योग शुरू कर रिवर्स पलायन की एक नई कहानी लिखी है। लगभग साढ़े छह लाख रुपये का निवेश करके उन्होंने छह मशीनों के साथ अपने लघु उद्योग “छौंक” की शुरुआत की है। उनकी योजना है कि तैयार किए गए मशाला उत्पादों को बड़े पैमाने पर बाजार में उतारा जाए, जिसके तहत उन्होंने गांव के चार लोगों को रोजगार भी प्रदान किया है।
मोहित, जो एमेंटस ग्रुप ऑफ कंपनीज में दुबई और अफ्रीका के बड़े अस्पतालों में फार्मेसिस्ट के रूप में कार्य कर चुके हैं, ने अपने क्षेत्र में बढ़ते पलायन को देखते हुए युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ने की ठानी। उनका मानना है कि उत्तराखंड के गांवों में शुद्ध पहाड़ी उत्पादों के जरिए स्वरोजगार की संभावनाएं बहुत बड़ी हैं। उनका अनुभव बताता है कि पहाड़ी उत्पादों की विदेशों में भी मांग है, और बस इन्हें सही तरीके से मार्केट में लाने की आवश्यकता है।
मोहित का कहना है कि वह मशालों के अलावा पहाड़ी मोटे अनाज (जैसे झंगोरा, कोदा) और दालों की पैकेजिंग कर उन्हें बाजार में उतार रहे हैं। इसके साथ ही, वह डेयरी उद्योग खोलने की योजना पर भी काम कर रहे हैं।
न्यूली ग्राम सभा के प्रधान संजय देव डंगवाल ने कहा कि प्रवासी युवाओं को रोकने के लिए सरकार की स्वरोजगार योजनाओं का लाभ दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने मोहित के स्वरोजगार को गांव के अन्य युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया।
स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में भी मोहित सक्रिय हैं। बीफार्मा पासआउट और कविताओं के शौकीन मोहित, अपने 15 वर्षों के अनुभव का लाभ ग्रामीणों को प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा देने में लगा रहे हैं। गांव से श्रीनगर अस्पताल की दूरी लगभग 30 किमी है, ऐसे में वह इमरजेंसी में बीमार लोगों को अपने वाहन से अस्पताल पहुंचाने के लिए भी तैयार रहते हैं। उनकी इस सेवा का कई लोगों ने लाभ उठाया है।
मोहित मैठाणी की कहानी न केवल रिवर्स पलायन का प्रतीक है, बल्कि यह स्वरोजगार की संभावनाओं और स्वास्थ्य सेवाओं की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।