देहरादून। कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने अल्मोड़ा में जंगल की आग में जलने से हुई चार वन कर्मियों की मौत और चार कर्मियों के घायल होने के मामले में अपने ट्विटर अकाउंट एक्स के जरिए घटना पर दुख जताया है। उन्होंने लिखा है कि उत्तराखंड में जंगल की आग बुझाने गए चार कर्मचारियों की मृत्यु और कई अन्य के घायल होने का समाचार अत्यंत दुखद है। सभी के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती हूं। पीड़ित परिवारों को मुआवजा और हर संभव स्तर पर सहायता का आग्रह मैं राज्य सरकार से करती हूं। उन्होंने लंबे समय से पर्वतीय क्षेत्रों में सुलग रहे जंगलों को लेकर भी चिंता जताई है। लिखा है कि पिछले कई महीने से उत्तराखंड के जंगल लगातार जल रहे हैं। सैकड़ों हेक्टेयर जंगल तबाह हो चुके हैं। हिमाचल प्रदेश में भी जंगलों में जगह-जगह आग लगने की सूचनाएं हैं। एक स्टडी के मुताबिक हिमालय क्षेत्र के जंगलों में आग लगने की घटनाओं में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर हमारे हिमालय और पर्वतीय पर्यावरण पर हुआ है। मेरी केंद्र और राज्य सरकारों से अपील है कि आग लगने की घटनाओं के रोकने के उपाय हों और हिमालय को बचाने के लिए सबके सहयोग से व्यापक स्तर पर कारगर प्रयास किए जाएं।
कुमाऊं आयुक्त दीपक रावत ने बताया कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर अल्मोड़ा के बिनसर क्षेत्र में हुई वनअग्नि में गंभीर रूप से झुलस कर घायल हुए कर्मचारियों के लिए दिल्ली से दो एयर एंबुलेंस पंतनगर पहुंच रही है जिसके बाद सुशीला तिवारी अस्पताल से सभी घायलों को दिल्ली के सफदरजंग स्थित अस्पताल में बर्न यूनिट में भर्ती कराया जाएगा। मुख्यमंत्री के निर्देश के अनुसार वन विभाग के कर्मचारियों को प्राथमिकता के आधार पर बेहतर से बेहतर इलाज दिए जाने के निर्देश दिए गए हैं। बृहस्पतिवार को अल्मोड़ा के बिनसर अभयारण्य में भीषण आग से चार कार्मिकों की दर्दनाक मौत हुई है, उसी आग के शिकार हुए चार लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं।
उत्तराखंड के जंगलों में लग रही आग पर सरकार को सुप्रीम कोर्ट भी अपनी सख्ती दिखा चुका है। वनाग्नि को लेकर एक याचिकाकर्ता ने एनजीटी से कोई कार्रवाई न होने के बाद न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और वनाग्नि की घटनाओं और उससे हो रहे नुकसान से निपटने के लिए ठोस कार्रवाई करने के निर्देश सरकार को दिए जाने की मांग भी की थी। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह वनाग्नि से निपटने के लिए हम बारिश अथवा क्लाउड सीडिंग के भरोसे हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठ सकते। इसलिए सरकार को इसके लिए कारगर पहल करनी चाहिए।
उत्तराखंड में वनाग्नि के मामलों में सरकार ने कार्रवाई करने के कई दावे किए। 910 से अधिक मामले रजिस्टर किए और 350 से अधिक आपराधिक मामले भी दर्ज किए गए। जिनमें 62 लोगाें को नामजद भी किया गया। लेकिन इनमें से 300 से अधिक की भी अभी तक ना तो पहचान हो पाई है और ना ही किसी के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई। परिणाम जंगलों में आग लगाने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं और सरकार के दावे महज हवाई साबित होते जा रहे हैं।
सूबे में फायर सीजन की घटनाओं के दौरान सरकारी तंत्र और वन महकमा आखिरकार बौना ही साबित हुआ। प्रदेश के अकेले अल्मोड़ा जिले की बात करें तो यहां इस बार पिछले दस सालों का रिकार्ड टूट गया और इस फायर सीजन में नौ लोगों को असमय अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। वनाग्नि की इन घटनाओं के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी मोर्चा संभाला। कई अफसर निलंबित किए गए और कर्मचारियों की छुट्टियां भी कैंसिल कर दी गई। लेकिन इसके बाद भी न तो सरकारी मशीनरी ने कोई गंभीरता दिखाई और ना ही वन महकमे ने पूर्व की घटनाओं से कोई सबक लिया।
सरकार और वन महकमे के लिए टेढ़ी खीर साबित हुआ। कुमाऊं के नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़ और गढ़वाल के कुछ जिलों में जंगल की आग हद से ज्यादा बेकाबू होती चली गई। नैनीताल समेत अनेक इलाकों में वनाग्नि से निपटने के लिए सरकार को वायु सेना तक की मदद लेनी पड़ी। वनाग्नि की इन घटनाओं में सबसे अधिक प्रभावित अल्मोड़ा जिला रहा। यहां पहले सोमेश्वर तहसील में दो अलग अलग हादसों में पांच लोगों की जान चली गई और बृहस्पतिवार को फिर चार लोग वनाग्नि की भेंट चढ़ गए। ऐसी हालत में अब प्रदेश के अल्मोड़ा जिले में वनाग्नि पर काबू पाना वन महकमे के साथ ही सरकार के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन गई है। वनाग्नि की घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया गया तो भविष्य में इसके और अधिक घातक परिणाम सामने आ सकते हैं।