ऋषिकेश
एम्स में उपचार के लिए आए उत्तर प्रदेश निवासी एक २० वर्षीय युवक जिसे सांस फूलने एवं बलगम में खून आने की शिकायत थी। चिकित्सकीय जांच से मालूम हुआ कि उनके दोनों फेफड़ों के साथ साथ दिल में भी जलस्फोट यानि हयदतिड नामक व्याधि है। यही नहीं सघन स्वास्थ्य परीक्षण के उपरांत पता चला कि इस जटिल बीमारी के कुछ अंश राइट वेंट्रिकल से टूट कर फेफड़ों की नसों में भी पहुंच चुके हैं। युवक एक साल से भी अधिक समय से विभिन्न चिकित्सकों से लगातार उपचार ले रहा था मगर कोई आराम नहीं हुआ। लिहाजा दिन प्रतिदिन बढ़ती बीमारी के चलते मरीज ने आखिरी उम्मीद लिए ऋषिकेश एम्स की ओर रुख किया। संस्थान के कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. भानु दुग्गल एवं डॉ. यश श्रीवास्तव द्वारा पेशेंट की इको जांच करने के बाद, पल्मोनोलॉजी विभाग में डॉ. मयंक मिश्रा एवं डॉ. रूचि दुआ द्वारा उसकी ब्रोंकोस्कोपी जांच की गई। इसके बाद केस को शल्य चिकित्सा के लिए सीटीवीएस विभाग के पीडियाट्रिक कॉर्डियक सर्जन को रेफर कर दिया गया।
लिहाजा इस मरीज का संस्थान के पीडियाट्रिक कॉर्डियक सर्जन डॉ. अनीश गुप्ता की टीम द्वारा जटिलतम सर्जरी कर जलस्फोट को दिल और दोनों फेफड़ों से एक साथ निकाला गया।
इस हाई रिस्क ऑपरेशन को डॉ. अनीश गुप्ता की टीम ने बखूबी अंजाम देने में सफलता हासिल करने के साथ साथ मरीज को नया जीवन दिया है। शल्य चिकित्सा के बाद से मरीज पूरी तरह से स्वस्थ है, लिहाजा उसे स्वास्थ्य संबंधी पूर्व में होने वाली कोई दिक्कतें नहीं हैं। बताया गया है कि इस जटिलतम सर्जरी में एनेस्थीसिया विभाग से डॉ. अजय मिश्रा आदि चिकित्सकों ने अहम भूमिका निभाई। साथ ही डॉ. अभिशो, डॉ. ईशान एवं डॉ. शुभम, नर्सिंग विभाग से केशव, मोहन, धरम, चांद व संतोष ने सहयोग प्रदान किया।
संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर (डॉ.) मीनू सिंह ने इस जटिल शल्य चिकित्सा की सफलता व मरीज को जीवनदान देने के लिए डॉ. अनीश गुप्ता और उनकी टीम की सराहना की। उन्होंने बताया कि एम्स संस्थान में हृदय और वक्ष संबंधी सभी व्याधियों के उपचार की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
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क्या है दिल का जलस्फोट ?
यह एक विशेष पैरासाइट से होने वाला गंभीर संक्रमण है, जो संभावित रूप से मरीज के जीवन के लिए घातक हो सकता है। हयदतिड रोग मुख्यरूप से जिगर और फेफड़ों में होता है, कुछ मामलों में यह मस्तिष्क या अन्य अंगों में को भी प्रभावित कर सकता है। दिल के अंदर इस बीमारी का पाया जाना बेहद दुर्लभ है। यह दिल के दाएं या बाएं भाग में पाया जा सकता है। इस रोग से ग्रसित मरीज में शरीर के किसी अंग में सिस्ट (सिस्ट) बनने लगती है, जिसमें परजीवी के अंडे (लार्वा ) होते हैं।
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ऐसे फैलता है हाइडेटिड रोग
हाइडेटिड रोग एक परजीवी संक्रमण है, जो जीनस एकाइनोकॉकस के टेपवर्म से होता है। यह एक हानिकारक रोगजनक परजीवी है, जो कि जानवरों से मनुष्यों में फैलता है। यह मनुष्यों में आमतौर पर संक्रमित कुत्तों के मल के संपर्क में आने से होता है, क्योंकि इनके मल में टेपवर्म के अंडे मौजूद होते हैं। टेपवर्म या उनके अंडों से संपर्क मुख्यरूप से भोजन, पानी और जानवरों के बाल आदि से होता है। संक्रमित कुत्तों की पूंछ व गुदा के आस-पास के बालों में टेपवार्म के अंडे चिपके रह जाते हैं और उन्हें उठाने या हाथ लगाने से यह अंडे हाथों पर लग जाते हैं। खाना खाने, पानी पीने या सामान्य तौर पर मुहं पर हाथ लगाने से यह अंडे मुहं तक पहुंच कर शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं। जिससे व्यक्ति इस खतरनाक बीमारी से ग्रसित हो जाता है। ऐसे में खासकर पशु पालकों और पशु प्रेमियों को सतर्क रहने की आवश्यकता है, अन्यथा वह इस खतरनाक बीमारी के शिकार हो सकते हैं।