गुरु वंदना का पावन पर्व गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म में गुरु का स्थान सर्वोपरि श्रद्धा एवं समर्पण का पावन पर्व गुरु पूर्णिमा

देहरादून, 21 जुलाई। करता करे ना कर सके, गुरु करे सब होय। सात द्वीप, नौ खंड में गुरु से बड़ा ना कोय।।
गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर माता वैष्णो देवी गुफा योग मंदिर टपकेश्वर महादेव में विशेष पूजा अर्चना की गई। इस अवसर पर सत्संग में आचार्य डॉक्टर बिपिन जोशी ने कहा की भारतीय संस्कृति में हजारों वर्षों से गुरु-शिष्य की अटूट परंपरा चली आ रही है। सनातन धर्म में गुरु का स्थान सर्वोपरि है, गुरु के बिना जीवन निरर्थक है। गुरु के द्वारा दिखाए गए मार्ग से ही व्यक्ति अपने जीवन को अज्ञान के अंधकार से निकालकर कर ज्ञान रूपी प्रकाश से सार्थक, सुखद एवं सुगम बनाते है। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति संभव नहीं है, गुरु-शिष्य परंपरा भारतीय संस्कृति की अनुपम धरोहर है। गुरु का दर्जा भगवान के बराबर माना जाता है क्योंकि गुरु, व्यक्ति और सर्वशक्तिमान के बीच एक कड़ी का काम करता है। अंधकार, अज्ञान व असत्य से प्रकाश, ज्ञान और सत्य की ओर उन्मुख करने वाले गुरु का स्थान हमारे जीवन में अतुल्य है। गुरु पूर्णिमा पर्व सच के मार्ग पर ले जाने वाले महापुरुषों के प्रति कृतज्ञता अर्पित करने की प्रेरणा देता है। ध्यान. ज्ञान. धैर्य और कर्म सब गुरु की ही देन है l
आचार्य डॉक्टर बिपिन जोशी ने कहा की गुरुदेव ही सत्त्वगुणी होकर विष्णुरूप से जगत का पालन करते हैं, रजोगुणी होकर ब्रह्मारूप से जगत का सृजन करते हैं और तमोगुणी होकर रूद्ररूप से जगत का संहार करते हैं। परमात्मा से हम सीधे जुड़ नहीं सकते। हमारे लिए तो परमात्मा जैसे व्यक्ति का मिलना ही गुरु का मिलन है। गुरु का अर्थ है ऐसी मानव-सत्ता, जो मनुष्यता एवं दिव्यता की सीमा पर स्थित है। जो हमारी तरह दिखने में तो है, लेकिन वह हमारी भांति नहीं है। जिस मानव के भीतर दिव्य परम-सत्ता की ज्योति जल उठी, वह संत है और दिव्य ज्योति से युक्त वह मानव सत्ता जो ज्योति को दूसरे मानव में हस्तांतरित करने में सक्षम होता है, वह गुरु है। विशेष पूजा अर्चना में योगाचार्य अंबिका उनियाल, योगाचार्य अभिलाषा, योगाचार्य मनोज जोशी, योग शिक्षक चंद्रशेखर, लक्ष्मी उनियाल, नीतू सबरवाल, श्रद्धा रतूड़ी, कमला थापा जितेंद्र मलिक आदि का विशेष सहयोग रहा।

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